बाबा रामदेव जी का जन्म संवत् १४०९ में भाद्र मास की दूज को राजा अजमलजी के घर हुआ।
इनकी माता का नाम मेनादे था | इनके जन्म के समय अनेक चमत्कार हुवे जेसे - उस समय सभी मंदिरों में घंटियां बजने लगीं , तेज प्रकाश से सारा नगर जगमगाने लगा।
महल में जितना भी पानी था वह दूध बदल गया , महल के मुख्य द्वार से लेकर पालने तक कुम कुम के पैरों के पदचिन्ह बन गए , महल के मंदिर में रखा संख स्वत : बज उठा। इन्होने अपना निवास पोकरण के पास रुनिचा गाव में बनाया | बाल्यकाल में बाबा रामदेव ने भेरव नमक राक्षस का वध कर पोकरण को इसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई | रामदेवरा में रामदेवजी का समाधि स्थल पर विशाल मंदिर बना हे , जन्हा भाद्रपद सुकला द्वितीय से एकादसी तक विशाल मेले का आयोजन होता हे | रामदेवजी को रामसा पीर भी कहते हे | छोटा रामदेवरा गुजरात में हे रामदेवजी ने कामडिया पन्त प्रारंभ किया | रामदेव जी मेघवाल जाती की डाली बायीं को अपने बहिन बना कर समाज के सामने एक आदर्श स्थापित किया | रामदेवजी के मंदिर को देवरा कहा जाता हे |
जिन पर श्वेत या पांच रंगों के ध्वजा फहरायी जाती हे |
बाबा रामदेव भगवन द्वारकानाथ के अवतार माने जाते हे |
1.बाल लीला में माता को परचा
भगवान नें जन्म लेकर अपनी बाल
लीला शुरू की ।
एक दिन भगवान रामदेव व विरमदेव
अपनी माता की गोद में खेल रहे थे,
माता मैणादे उन
दोनों बालकों का रूप निहार
रहीं थीं । प्रात:काल
का मनोहरी दृश्य और
भी सुन्दरता बढ़ा रहा था । उधर
दासी गाय का दूध निकाल कर
लायी तथा माता मैणादे के हाथों में
बर्तन देते हुए
इन्हीं बालकों के क्रीड़ा क्रिया में रम
गई ।
माता बालकों को दूध पिलाने के लिये
दूध को चूल्हे पर
चढ़ाने के लिये जाती है ।
माता ज्योंही दूध को बर्तन
में डालकर चूल्हे पर चढ़ाती है । उधर
रामदेव
जी अपनी माता को चमत्कार
दिखाने के लिये
विरमदेव जी के गाल पर चुमटी भरते हैं
इससे विरमदेव
को क्रोध आ जाता है तथा विरमदेव
बदले
की भावना से रामदेव
जी को धक्का मार देते हैं ।
जिससे रामदेव जी गिर जाते हैं और
रोने लगते हैं ।
रामदेव जी के रोने की आवाज सुनकर
माता मैणादे दूध
को चुल्हे पर ही छोड़कर आती है और
रामदेव
जी को गोद में लेकर बैठ जाती है । उधर
दूध गर्म होन के
कारण गिरने लगता है, माता मैणादे
ज्यांही दूध
गिरता देखती है वह
रामदेवजी को गोदी से नीचे
उतारना चाहती है उतने में
ही रामदेवजी अपना हाथ
दूध की ओर करके अपनी देव शक्ति से
उस बर्तन को चूल्हे
से नीचे धर देते हैं । यह चमत्कार देखकर
माता मैणादे व
वहीं बैठे अजमल जी व
दासी सभी द्वारकानाथ
की जय जयकार करते हैं ।
2.बाल लीला में कपड़े के घोड़े को आकाश में उड़ाना
एक दिन रामदेव जी महल में बैठे हुए
थे उस समय रामदेव जी ५ वर्ष के थे ।
एक घुड़सवार को देखकर रामदेव जी ने
बाल हठ किया कि मैं भी घोड़े पर
बैठुंगा । रामदेव जी को मनाने के लिये
माता ने खूब जत्न किये पीने के लिये
दूध, खेलने कि लिये हाथी-घोड़े उँट
आदि के खिलौने सामने रखे किन्तु
अपने बाल हठ को नहीं छोड़ा ।
माता ने दासी को भेजकर राजघराने
के दर्जी को बुलाया और
समझाया कि कुंवर रामदेव के लिये
कपड़ों का सुन्दर घोड़ा बनाकर लाओ
उस पर लीला याने हरे कपड़े का झूल
लगाकर लाना ।
माता जी ने दर्जी को सुन्दर
कपड़े दिये और कहा कि जाओ इन
कपड़ों का घोड़ा तैयार करके लाओ ।
दर्जी के मन में लालच आया और उसने
पुराने कपड़े का घोड़ा बनाकर उपर हरे
रंग की झूल लगा दी और घोड़ा लेकर
राजदरबार पहुँचा तथा रामदेव जी के
सामने रखा तभी रामदेव जी ने
अपना हठ तोड़ा ।
श्री रामेदव जी कपड़े के बने घोड़े
को देखकर बहुत खुश हुए और घोड़े पर
सवारी करने लगे । ज्यूंहि भगवान
श्री रामदेव जी घोड़े पर सवार हुए
कपड़े का घोड़ा हिन हिनाता और
आगे के दोनों पैर खड़ा होकर दरबार में
ही नाचने लगा, कपड़े के घोड़े
को नाचता देखकर सारा दरबार
हिनले लगा । नाचते नाचते बालक
को लेकर आकाश मार्ग की ओर
घोड़ा उड़ चला । इसको देखकर सब
घबराने लगे ।
माता मैणादे,राजा अजमल जी व
भाई वीरमदेव सब ही अचम्भे में पड़ गए ।
राजा अजमल जी को बड़ा क्रोध
आया और उन्होंने दर्जी के घर एक सेवक
को भेजा और उस दर्जी को बुलाया ।
जब राज दर्जी दरबार में पहुँचा,दरबार
खचाखच भरा हुआ था । तब अजमल
जी ने कहा कि हे राज दर्जी सच सच
बताना कि तुमने उस कपड़े के घोड़े पर
क्या जादू किया है ? सो मेरे कुंवर
को लेकर आकाश में उड़ा ।
राज दर्जी कपड़े के घोड़े
को आकाश में उड़ता देखकर दंग रह
गया और डर के मारे थर थर कांपने
लगा और कहने लगा मैने काई जादू
नहीं किया । दर्जी की बात
का राजदरबार में कोई असर नहीं हुआ
। क्योंकि दूसरा कारण था ।
जो घोड़ा दर्जी ने बनाया था ।
उसमें पुराने कपड़े लगाकर भगवान के
साथ छल किया था । अजमल जी ने
कहा यह सब तेरी करामात है इसलिये
हुक्म है कि इस दर्जी को पकड़कर
कारागृह में डाल दो और
सिपाहियों को आदेश दिया कि जब
तक रामा कंवर घोड़े से नीचे ना आये
तब तक इस दर्जी को अंधेरी कोठरी से
बाहर मत निकालना । तब
दर्जी कोठरी में पड़ा रोने लगा और
भगवान को सुमरन करने लगा ।
इस प्रकार दर्जी ने भगवान
को पुकारा तब भगवान श्री रामदेव
जी ने दर्जी पर कृपा करी ।
क्योंकि भगवान हमेशा भक्तों के वश
में हुआ करते हैं । जब दर्जी ने
विनती की तब भगवान
रामदेवजी घोड़े सहित काल कोठरी में
गए । रामा राज कंवर के कोठरी में आते
ही चान्दनी खिल गई और रामदेव
जी ने दर्जी से कहा तुमने पुराने
कपड़ों का घोड़ा बनाया इसलिये
तुम्हे इतना कष्ट उठाना पड़ा । जा मैनें
तेरे सारे पाप खत्म किये । तुमने
घोड़ा बहुत सुन्दर बनाया और हरे रंग
की रेशमी झूल ने मेरा मन मोह
लिया । हे दर्जी आज से यह कपड़े
का घोड़ा लीले घोड़े के नाम से
प्रसिद्ध होगा । जहां पर
मेरी पूजा होगी,वहीं पर मेरे साथ इस
घोड़े की भी पूजा होगी ।
3.मिश्री को नमक बनाया
एक समय की बात है नगर में एक
लाखु नामक "बणजारा"
जाति का व्यापारी अपनी बैलगाड़ी पर
मिश्री बेचने हेतु आया । उसने अपने
व्यापार से सम्बंधित तत्कालीन
चुंगी कर नहीं चुकाया था ।
रामदेवजी ने जब उस बणजारे से
चुंगी कर न चुकाने का कारण
पूछा तो उसने बात को यह कह कर
टाल दिया कि यह तो नमक है, और
नमक पर कोई चुंगी कर नहीं लगता और
अपना व्यापार करने लगा यह देख कर
रामदेव जी ने उस बणजारे को सबक
सिखाने हेतु
उसकी सारी मिश्री नमक में बदल
दी । थोड़ी देर बाद जब सभी लोग
उसको मिश्री के नाम पर नमक देने के
कारण पीट रहे थे तब उसने
रामदेवजी को याद करते हुए
माफ़ी मांगी और चुंगी कर चुकाने
का वचन दिया । रामदेवजी शीघ्र
ही वहां पहुंचे और
सभी लोगो को शांत करवाते हुए
कहा कि इसको अपनी गलती का पश्चाताप
है, अतः इसे मैं माफ़ करता हूँ, और फिर
से वह सारा नमक मिश्री में बदल
गया ।
4.श्री बाबा रामदेव जी के हाथों भैरव राक्षस का वध
एक दिन भगवान रामदेव जी खेलते
खेलते जंगल में बढ़ते ही जा रहे थे । आगे
चलने पर बाबा रामदेव जी को एक
पहाड़ नजर आया । उस पहाड़ पर चढ़े
तो वहां से थोड़ी दूरी पर एक
कुटिया नजर आयी तब भगवान उस
कुटिया के पास पहुंचे तो देखते हैं
वहां पर एक बाबा जी घ्यान मग्न बैठे
थे । भगवान रामदेव जी ने गुरू जी के
चरणों में सिर झुकाकर नमस्कार
किया । तब गुरू जी ने पूछा बालक
कहां से आये हो तुम्हें मालूम
नहीं यहां पर एक भैरव नाम
का राक्षस रहता है
जो जीवों को मारकर खा जाता है ।
तुम जल्दी से यहां से चले जाओ उसके
आने का वक्त हो गया है । वह तुम्हें
भी मारकर खा जाएगा और मेरे
को बाल हत्या लग जाएगी, इसलिये
तुम इस कुटिया से कहीं दूर चले जाओ ।
भगवान बाबा रामदेव जी मीठे
शब्दों में कहते हैं - मैं क्षत्रीय कुल
का सेवक हूँ स्वामी ! भाग
जाउंगा तो कुल पर कलंक
का टीका लग जायेगा । मैं रात्री भर
यहाँ रहूँगा प्रभात होते
ही चला जाउंगा और वहीं पर भैरव
राक्षस के आने पर रामदेवजी ने
उसका वध कर प्रजा का कल्याण
किया ।
5.बोहिता को परचा व
परचा बावड़ी
एक समय रामदेव जी ने दरबार
बैठाया और निजीया धर्म
का झण्डा गाड़कर उँच नीच, छुआ छूत
को जड़ से उखाड़कर फैंकने का संकल्प
किया तब उसी दरबार में एक सेठ
बोहिताराज वहां बैठा दरबार में प्रभू
के गुणगान गाता तब भगवान रामदेव
जी अपने पास बुलाया और हे सेठ तुम
प्रदेश जाओ और माया लेकर आओ ।
प्रभू के वचन सुनकर बोहिताराज
घबराने लगा तो भगवान रामदेव
जी बोले हे भक्त जब भी तेरे पर संकट
आवे तब मैं तेरे हर संकट में मदद करूंगा । तब
सेठ रूणिचा से रवाना हुए और प्रदेश
पहुँचे और प्रभू की कृपा से बहुत धन
कमाया । एक वर्ष में सेठ
हीरो का बहुत बड़ा जौहरी बन
गया । कुछ समय बाद सेठ को अपने
बच्चों की याद आयी और वह अपने
गांव रूणिचा आने की तैयारी करने
लगा । सेठजी ने
सोचा रूणिचा जाउंगा तो रामदेवजी पूछेंगे
कि मेरे लिये प्रदेश से क्या लाये तब
सेठ जी ने प्रभू के लिये हीरों का हार
खरीदा और नौकरों को आदेश
दिया कि सारे हीरा पन्ना जेवरात
सब कुछ नाव में भर दो, मैं अपने देश
जाउंगा और सेठ सारा सामान लेकर
रवाना हुआ । सेठ जी ने
सोचा कि यह हार बड़ा कीमती है
भगवान रामदेव जी इस हार
का क्या करेंगे, उसके मन में लालच
आया और विचार करने
लगा कि रूणिचा एक छोटा गांव है
वहां रहकर क्या करूंगा, किसी बड़े
शहर में रहुँगा और एक बड़ा सा महल
बनाउंगा । इतने में ही समुद्र में जोर
का तुफान आने लगा, नाव चलाने
वाला बोला सेठ जी तुफान बहुत
भयंकर है नाव का परदा भी फट गया है
। अब नाव चल नहीं सकती नाव
तो डूबेगी ही । यह माया आपके किस
काम की हम दोनों मरेंगे ।
सेठ बोहिताराज भी धीरज
खो बैठा । अनेक देवी देवताओं
को याद करने लगा लेकिन सब बेकार,
किसी भी देवता ने उसकी मदद
नहीं की तब सेठजी को श्री रामदेव
जी का वचन का ध्यान आया और सेठ
प्रभू को करूणा भरी आवाज से पुकारने
लगा । हे भगवान मुझसे कोई
गलती हुयी हो जो मुझे माफ कर
दीजिये । इस प्रकार सेठजी दरिया में
भगवान श्री रामदेव जी को पुकार रहे
थे । उधर भगवान श्री रामदेव
जी रूणिचा में अपने भाई विरमदेव
जी के साथ बैठे थे और उन्होंने
बोहिताराज की पुकार सुनी ।
भगवान रामदेव जी ने
अपनी भुजा पसारी और
बोहिताराज सेठ की जो नाव डूब
रही थी उसको किनारे ले लिया ।
यह काम इतनी शीघ्रता से हुआ
कि पास में बैठे भई वीरमदेव
को भी पता तक नहीं पड़ने दिया ।
रामदेव जी के हाथ समुद्र के पानी से
भीग गए थे ।
बोहिताराज सेठ ने
सोचा कि नाव अचानक किनारे कैसे
लग गई । इतने भयंकर तुफान सेठ से बचकर
सेठ के खुशी की सीमा नहीं रही ।
मल्लाह भी सोच में पड़ गया कि नाव
इतनी जल्दी तुफान से कैसे निकल गई,
ये सब किसी देवता की कृपा से हुआ है
। सेठ बोहिताराज ने
कहा कि जिसकी रक्षा करने वाले
भगवान श्री रामदेव जी है
उसका कोई बाल बांका नहीं कर
सकता । तब मल्लाहों ने
भी श्री रामदेव जी को अपना इष्ट
देव माना । गांव पहुंचकर सेठ ने
सारी बात गांव
वालांे को बतायी । सेठ दरबार में
जाकर श्री रामदेव जी से मिला और
कहने लगा कि मैं माया देखकर
आपको भूल गया था मेरे मन में लालच
आ गया था । मुझे क्षमा करें और आदेश
करें कि मैं इस माया को कहाँ खर्च करूँ
। तब श्री रामदेव जी ने कहा कि तुम
रूणिचा में एक बावड़ी खुदवा दो और
उस
बावड़ी का पानी मीठा होगा तथा लोग
इसे परचा बावड़ी के नाम से पुकारेंगे व
इसका जल गंगा के समान पवित्र
होगा । इस प्रकार
रामदेवरा (रूणिचा) मे आज भी यह
परचा बावड़ी बनी हुयी है ।
6.पांच पीरों से मिलन
व परचा
चमत्कार होने से लोग गांव गांव से
रूणिचा आने लगे । यह बात
मौलवियों और पीरों को नहीं भाई ।
जब उन्होंने देखा कि इस्लाम खतरे में
पड़ गया और मुसलमान बने हिन्दू फिर
से हिन्दू बन रहे हैं और सोचने लगे
कि किस प्रकार रामदेव
जी को नीचा दिखाया जाय और
उनकी अपकीर्ति हो । उधर भगवान
श्री रामदेव जी घर घर जाते और
लोगों को उपदेश देते कि उँच-नीच,
जात-पात कुछ नहीं है, हर
जाति को बराबर अधिकार
मिलना चाहिये । पीरों ने
श्री रामदेव जी को नीचा दिखाने
के कई प्रयास किये पर वे सफल नहीं हुए
। अन्त में सब पीरों ने विचार
किया कि अपने जो सबसे बड़े पीर
जो मक्का में रहते हैं उनको बुलाओ
वरना इस्लाम नष्ट हो जाएगा । तब
सब पीर व मौल्वियों ने मिलकर
मक्का मदीना में खबर दी कि हिन्दुओं
में एक महान पीर पैदा हो गया है, मरे
हुए प्राणी को जिन्दा करना, अन्धे
को आँखे देना,
अतिथियों की सेवा करना ही अपना धर्म
समझता है, उसे
रोका नहीं गया तो इस्लाम संकट में
पड़ जाएगा । यह खबर जब
मक्का पहुँची तो पाँचों पीर
मक्का से रवाना होने
की तैयारी करने लगे । कुछ दिनों में वे
पीर रूणिचा की ओर पहुँचे ।
पांचों पीरों ने भगवान रामदेव जी से
पूछा कि हे भाई रूणिचा यहां से
कितनी दूर है, तब भगवान रामदेवजी ने
कहा कि यह जो गांव सामने दिखाई
दे रहा है वही रूणिचा है, क्या मैं आपके
रूणिचा आने का कारण पूछ सकता हूँ ?
तब उन पाँचों में एक पीर बोला हमें
यहां रामदेव जी से मिलना है और
उसकी पीराई देखनी है । जब प्रभु
बोले हे पीरजी मैं ही रामदेव हूँ आपके
समाने खड़ा हूँ कहिये मेरे योग्य
क्या सेवा है ।
श्री रामदेव जी के वचन सुनकर
कुछ देर पाँचों पीर प्रभु की ओर देखते
रहे और मन ही मन हँसने लगे ।
रामदेवजी ने पाँचों पीरों का बहुत
सेवा सत्कार किया । प्रभू
पांचों पीरों को लेकर महल पधारे,
वहां पर गद्दी, तकिया और जाजम
बिछाई गई और
पीरजी गद्दी तकियों पर विराजे
मगर श्री रामदेव जी जाजम पर बैठ गए
और बोले हे पीरजी आप हमारे मेहमान
हैं, हमारे घर पधारे हैं आप हमारे
यहां भोजन करके ही पधारना ।
इतना सुनकर पीरों ने कहा कि हे
रामदेव भोजन करने वाले कटोरे हम
मक्का में ही भूलकर आ गए हैं । हम
उसी कटोरे में ही भोजन करते हैं
दूसरा बर्तन वर्जित है । हमारे इस्लाम
में लिखा हुआ है और पीर बोले हम
अपना इस्लाम नहीं छोड़ सकते
आपको भोजन कराना है
तो वो ही कटोरा जो हम मक्का में
भूलकर आये हैं मंगवा दीजिये तो हम
भोजन कर सकते हैं वरना हम भोजन
नहीं करेंगे । तब रामदेव जी ने
कहा कि हे पीर जी राम और रहीम
एक ही है, इसमें कोई भेद नहीं है, अगर
ऐसा है तो मैं आपके कटोरे मंगा देता हूँ
। ऐसा कहकर भगवान रामदेव जी ने
अपना हाथ लम्बा किया और एक
ही पल में पाँचों कटोरे पीरों के सामने
रख दिये और कहा पीर जी अब आप इस
कटोरे को पहचान लो और भोजन
करो । जब पीरों ने पाँचों कटोरे
मक्का वाले देखे
तो पाँचों पीरों को अचम्भा हुआ और
मन में सोचने लगे कि मक्का कितना दूर
है । यह कटोरे हम मक्का में छोड़कर आये
थे । यह कटोरे यहां कैसे आये तब
पाँचों पीर श्री रामदेव जी के
चरणों में गिर पड़े और क्षमा माँगने लगे
और कहने लगे हम पीर हैं मगर आप महान्
पीर हैं । आज से
आपको दुनिया रामापीर के नाम से
पूजेगी । इस तरह से पीरों ने भोजन
किया और श्री रामदेवजी को पीर
की पदवी मिली और रामसापीर,
रामापीर कहलाए ।